आज तक ऐसी कोई मशीन नहीं बन पाई है, जिससे भूकंप आने से पहले उसका पता लगाया जा सके, लेकिन कुछ पशु-पक्षी भूकंप आने से पहले ही उसे आसानी से भाप लेते हैं और अपना घर छोड़ देते हैं.
ब्रह्मांड में करोड़ों उल्का पिंड घूमते है, जब ये उल्का पिंड पृथ्वी या सूर्य के पास होते हैं, तभी भूकंप आने की संभावना होती है. राजस्थान के जयपुर में शुक्रवार की अल सुबह आए 3 झटकों आए, जो पूरे जयपुर को हिला गए. भूकंप का केंद्र भाकरोटा रहा.
भूकंप आने पर वैज्ञानिक रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता को नाप लेते हैं, लेकिन रिसर्च में पाया गया है कि पशु-पक्षी को इसका सबसे पहले पता लग जाता है. जानिए वो कौन से पशु-पक्षी है?
चींटी
हर घर में पाई जाने वाली चींटी को भूकंप आने का आभास पहले ही हो जाता है. रिसर्च में पाया गया कि चींटी भूकंप की तीव्रता मापने वाले रिक्टर पैमाने पर 2.0 तक के झटके को महसूस कर लेती है, जिसको कभी इंसान महसूस नहीं कर सकता है. 3 साल तक चींटियों पर हुई रिसर्च में पता चला कि भूकंप का पता लगते ही चींटियां अपना घर छोड़ देती हैं. वैसे तो चींटियां दिन में घर बदलती हैं, लेकिन भूकंप का आभास होते ही वो किसी भी वक्त घर छोड़ देती हैं क्योंकि उनको लगता है कि उनका घर ढहने वाला है. कहा जाता है कि चींटियां कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्तर और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र आसानी से समझ जाती हैं.
सांप
सांप को भूकंप की जानकारी आने से पहले लग जाती है. देखा गया है कि भूकंप के झटके आने से पहले ही सांप अपने घरों यानि बिलों से बाहर आने लगते हैं. रिसर्च में पाया गया है कि बहुत हल्के झटके को भी सांप महसूस कर लेता है और एक साथ बहुत सारे सांप अपने बिलों से बाहर आने लग जाते हैं. हालांकि मनुष्य को हल्के झटकों में कोई नुकसान नहीं होता है और ना ही उन्हें पता लगता है, लेकिन सांप इसको महसूस कर लेते हैं. सांप एक ठंडे खून वाला जीव है, इसी वजह से वो ठंडे मौसम में बाहर नहीं आते हैं और पूरी सर्दी बिलों में बिताते हैं, लेकिन भूकंप का पता लगते ही वो कंडाके की ठंड में भी बाहर निकल जाते हैं.
मछलियां
मछलियां को भी भूकंप का पता लग जाता है. समुद्र की गहराइयों में रहने वाली मछलियां भूकंप की तीव्रता को आसानी से भाप लेती हैं. इसकी वजह यह भी है कि धरती से पहले भूकंप का पता पानी में चल जाता है. कहा जाता है कि समुद्र में रहने वाली ओरफिश भूकंप को महसूस करने में सबसे तेज है. यह रिबन की तरह दिखती है और 5 मीटर लंबी होती है. आमतौर पर यह मछली समुद्र के किनारों पर नहीं आती है, लेकिन भूकंप का पता चलते ही यह तटों पर आ जाती है. यह मछली बहुत ज्यादा गहराई में रहती है और बहुत कम बाहर आती है. रिसर्च में पाया गया कि इस मछली के किनारों पर आने के बाद जो भूकंप आया, उसकी तीव्रता 7.5 से अधिक रही है.